विद्यालयों में स्थिरता: पर्यावरण अनुकूल पहल और प्रथाएँ

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मन के आँगन की मिट्टी में देखो मैंने बो दी अपनी इच्छा 

हंस-सा उजला आकाश खगों के कलरव से भरा हो कितना अच्छा  

हरी दुनिया के पेड़ों पर हों अनछुए फूल और पक्षियों के घोंसले 

पहाड़ की चोटियाँ सिर गर्व से उठा बढ़ा रही हों हमारे हौंसले 

चमकीली नदियाँ फलक पर उड़ती सागर में समा जाने को हों तैयार 

दे सकूँ आने वाली पीढ़ी को प्रकृति के सौंदर्य का यह अनुपम उपहार। 

यह मेरी या आपकी नहीं बल्कि सभी की इच्छा है। यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यालय में पाठ्यक्रम और विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा को भी सुनिश्चित किया जाए। यह शिक्षा छात्रों के ज्ञान, कौशल को बढ़ाने के साथ-साथ उनमें जागरूकता भी बढ़ाती है। पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा को एकीकृत करके, स्कूलों को अगली पीढ़ी की समझ और उनके आसपास की दुनिया के प्रबंधन को आकार देने के साथ ही वैश्विक चुनौतियों का सामना करने का भी अवसर मिलता है। विद्यालयों में गतिविधियों के माध्यम से, बच्चों में आलोचनात्मक सोच और पर्यावरण की जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। वे सभी वास्तविक चीजों के माध्यम से ही पर्यावरण पर मानवीय क्रियाओं के प्रभाव के बारे में सीखते हैं। छात्रों के बेहतर भविष्य के लिए, नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के विकास को स्थापित करने के लिए युवा होती पीढ़ी को सशक्त बनाता है।वे अपने आस-पास के वातावरण का सूक्ष्म विश्लेषण कर उसे आलोचनात्मक दृष्टि से देख किसी भी समस्या का समाधान निकालने में सक्षम होंगे। 

पर्यावरणीय शिक्षा उन्हें दैनिक जीवन से जोड़ती है। प्रकृति से जुड़ाव अथार्त स्वयं से जुड़ाव जिसके आधार पर छात्र अपनी रुचियों का परिष्कार करना सीखते हैं। उसकी यह सकारात्मक सोच जहाँ प्रकृति को नए नज़रिए से देखने की दृष्टि प्रदान करती है, वहीं अपने परिवार तथा आस-पास की दुनिया से जुड़कर उनके प्रति लगाव भी बढ़ाती है। उनमें तनाव कम होता है जिसके कारण शारीरिक रूप से वह स्वस्थ रहता है। इन सबका असर मस्तिष्क पर पड़ता है और वह खुशी-खुशी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। अपने आस-पास का वातावरण स्वच्छ और हरा-भरा देखकर वह प्रत्येक घटना को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने लगता है। उसकी यही दृष्टि नए आविष्कारों की जननी होती है। उसकी उत्सुकता जिज्ञासा में परिवर्तित हो हर कदम पर सफलता प्रदान करती है। इसके द्वारा एक स्वस्थ जीवन शैली को विकसित किया जा सकता है। 

विभिन्न विषयों को प्रकृति से जोड़ा जा सकता है। उसके कई तरीके हो सकते हैं जैसे – गतिविधि करवाना, कक्षा को बाहर ले जाना। इनके माध्यम से छात्रों और कुदरत के मध्य सकारात्मक संबंध स्थापित होगा। वे पर्यावरण में व्याप्त चेतना को आत्मसात कर सकेंगे। इनाम के तौर पर पौधा देना या लेना, कॉपी से कागज़ न फाड़ना, पानी की बोतल का बचा पानी पौधों में डालना, बिजली बचाना, उपयोग के समय ही नल से पानी लेना, साइकिल का प्रयोग जैसी छोटी-छोटी बातें छात्रों को उनका दायित्व बताएँगी। उनको विद्यालय के उद्यान में एक कोना ऐसा दिया जाना चाहिए जिसकी देखभाल वे स्वयं करें। समय-समय पर इस कार्य के लिए शिक्षकों द्वारा पुरस्कृत भी करना चाहिए। यही हमारे देश की भावी पीढ़ी है जो भविष्य में अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकती है जिसकी नींव प्राकृतिक वातावरण पर टिकी हुई है। छात्रों को मिलकर बीमार प्रकृति का उपचार कर उसे स्वस्थ करना है। उनके इस कार्य में विद्यालय, शिक्षक और माता-पिता को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। अपना देश फिर सोने की चिड़िया बनकर सिंह गर्जन करे। यही मेरे विद्यालय के प्रत्येक शिक्षक और छात्र की इच्छा है और इसके लिए सब मिलकर अथक प्रयास भी कर रहे हैं। 


मीना गुप्ता 

Hindi Faculty – EET